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सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया:-धर्म है परम भोग-OSHO Upanisad

जीसस ने दो वचन कहे हैं। अलग—अलग कहे हैं! मैं कभी—कभी हैरान होता हूं क्यों अलग—अलग कहे हैं! एक वचन तो कहा है : 'अपने शत्रु को भी उतना ही प्रेम करो, जितना अपने को।’ और दूसरा वचन कहा है. 'अपने पड़ोसी को भी उतना ही प्रेम करो, जितना अपने को!' मैं कभी—कभी सोचता हूं कि जीसस से कभी मिलना होगा कहीं, तो उनसे कहूंगा कि दो बार कहने की क्या जरूरत थी! क्योंकि पड़ोसी और दुश्मन कोई अलग—अलग थीड़े ही होते हैं। एक ही से बात पूरी हो जाती है कि अपने को जितना प्रेम करते हो, उतना ही पड़ोसी को करो। पड़ोसी के अलावा और कौन दुश्मन होता है? दुश्मन होने के लिए भी पास होना जरूरी है ना! जो दूर है, वह तो दुश्मन नहीं होता।

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